क्रांति स्वर विक्रमी संवत,आर्यसमाज और साम्यवाद — विजय राजबली माथुर

stuti1.jpg
(आर्यसमाज की एक स्तुति-प्रार्थना )

1857 की क्रांति विफल होने पर 1875 मे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (विक्रमी संवत के प्रथम दिवस ) पर महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा ‘आर्यसमाज’ की स्थापना जनता को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध जाग्रत करने हेतु की गई थी और शुरू-शुरू मे इसके केंद्र छावनियों मे स्थापित किए गए थे। इसकी सफलता से भयभीत होकर रिटायर्ड ICS एलेन आक्टावियन हयूम (A .O. HUME) की सहायता से W.C.(वोमेश चंद्र) बनर्जी की अध्यक्षता मे इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना कराई गई जो प्रारम्भ मे ब्रिटिश साम्राज्य हेतु ‘सेफ़्टी वाल्व’ का काम करती थी। स्वामी दयानन्द के निर्देश पर आर्यसमाजियों ने राजनीतिक रूप से कांग्रेस मे प्रवेश करके इसे स्वाधीनता आंदोलन की ओर मोड दिया। खुद पट्टाभिसीता रमईय्या ने ‘कांग्रेस का इतिहास’ पुस्तक मे स्वीकार किया है कि स्वाधीनता आंदोलन मे जेल जाने वाले सत्याग्रहियों मे 85 प्रतिशत आर्यसमाजी थे। कांग्रेस के द्वारा आजादी की मांग करने पर 1906 मे मुस्लिम लीग और 1920 मे कुछ कांग्रेसी नेताओं को लेकर हिन्दू महासभा का गठन कांग्रेस को कमजोर करने हेतु ब्रिटिश साम्राज्य ने करवाया था। मुसलिम लीग की भांति हिन्दू महासभा शासकों के अनुकूल कार्य न कर पाई तब RSS का गठन 1925 मे करवाया गया जिसने विदेशी शासकों को खुश करने हेतु मुस्लिम लीग की तर्ज पर विद्वेष की आग को खूब भड़काया (जिसकी अंतिम परिणति देश विभाजन के रूप मे हुई)।

1925 मे ही राष्ट्र वादी कांग्रेसियों ने भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थापना स्वाधीनता आंदोलन को गति प्रदान करने हेतु की थी। किन्तु 1930 मे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना भारत मे कम्यूनिस्ट आंदोलन को रोकने हेतु करवा दी गई। लेनिन और बाद मे स्टालिन की सलाह को ठुकराते हुये उस समय के कम्यूनिस्ट नेताओं ने हू- ब-हू सोवियत रूस की तर्जपर पार्टी को चलाया जिसका परिणाम यह हुआ कि वे जनता की नब्ज पर अपनी उंगली न रख सके। सोवियत रूस मे भी ‘धर्म’ की अवधारणा के आभाव मे साम्यवाद का वह स्टाईल असफल हो गया और चीन मे भी जो चल रहा है वह मूल साम्यवाद नहीं है। हमारे देश मे अभी भी कुछ दक़ियानूसी विद्वान ‘धर्म’ और ‘साम्यवाद’ मे अंतर मानते हैं क्योंकि वे पुरोहितवाद को ही धर्म मानने की गलती छोडना नहीं चाहते । कुल मिला कर नुकसान शोषित-पीड़ित जनता का ही है। धर्म के नाम पर उसे मिलता है पोंगावाद जो उसके शोषण को ही मजबूत करता है। पाखंडी तरह तरह से जनता को ठगते हैं और जन-हितैषी कहलाने वाले कम्यूनिस्ट धर्म -विरोध के नाम पर अडिग रहने के कारण ‘धर्म’ की वास्तविक व्याख्या बताने से परहेज करते हैं।

‘धर्म’ के सम्बन्ध मे निरन्तर लोग लिखते और अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं परंतु मतैक्य नहीं है। ज़्यादातर लोग धर्म का मतलब किसी मंदिर,मस्जिद/मजार ,चर्च या गुरुद्वारा अथवा ऐसे ही दूसरे स्थानों पर जाकर उपासना करने से लेते हैं। इसी लिए इसके एंटी थीसिस वाले लोग ‘धर्म’ को अफीम और शोषण का उपक्रम घोषित करके विरोध करते हैं । दोनों दृष्टिकोण अज्ञान पर आधारित हैं। ‘धर्म’ है क्या? इसे समझने और बताने की ज़रूरत कोई नहीं समझता।
धर्म=शरीर को धारण करने के लिए जो आवश्यक है वह ‘धर्म’ है। यह व्यक्ति सापेक्ष है और सभी को हर समय एक ही तरीके से नहीं चलाया जा सकता। उदाहरणार्थ ‘दही’ जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है किसी सर्दी-जुकाम वाले व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता। ऐसे ही स्वास्थ्यवर्धक मूली भी ऐसे रोगी को नहीं दी जा सकती। क्योंकि यदि सर्दी-जुकाम वाले व्यक्ति को मूली और दही खिलाएँगे तो उसे निमोनिया हो जाएगा अतः उसके लिए सर्दी-जुकाम रहने तक दही और मूली का सेवन ‘अधर्म’ है। परंतु यही एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए ‘धर्म’ है।
मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध बनाने के लिए जो प्रक्रियाएं हैं वे सभी ‘धर्म’ हैं। लेकिन जिन प्रक्रियाओं से मानव जीवन को आघात पहुंचता है वे सभी ‘अधर्म’ हैं। देश,काल,परिस्थिति का विभेद किए बगैर सभी मानवों का कल्याण करने की भावना ‘धर्म’ है।
ऋग्वेद के इस मंत्र को देखें-

सर्वे भवनतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया :
सर्वे भद्राणि पशयनतु मा कश्चिद दु : ख भाग भवेत। ।

इस मंत्र मे क्या कहा गया है उसे इसके भावार्थ से समझ सकते हैं-

सबका भला करो भगवान ,सब पर दया करो भगवान।
सब पर कृपा करो भगवान,सब का सब विधि हो कल्याण। ।
हे ईश सब सुखी हों ,कोई न हो दुखारी।
सब हों निरोग भगवान,धन धान्य के भण्डारी। ।
सब भद्र भाव देखें,सन्मार्ग के पथिक हों।
दुखिया न कोई होवे,सृष्टि मे प्राण धारी । ।

ऋग्वेद का यह संदेश न केवल संसार के सभी मानवों अपितु सभी जीव धारियों के कल्याण की बात करता है। क्या यह ‘धर्म’ नहीं है?क्या इसकी आलोचना करके किसी वर्ग विशेष के हितसाधन की बात नहीं सोची जा रही है। जिन पुरोहितों ने धर्म की गलत व्याख्या प्रस्तुत की है उनकी आलोचना और विरोध करने के बजाये धर्म की आलोचना करके शोषित-उत्पीड़ित मानवों की उपेक्षा करने वालों (शोषकों ,उत्पीड़को) को ही लाभ पहुंचाने का उपक्रम है।

भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)।
क्या इन तत्वों की भूमिका को मानव जीवन मे नकारा जा सकता है?और ये ही पाँच तत्व सृष्टि,पालन और संहार करते हैं जिस कारण इनही को GOD कहते हैं …
GOD=G(generator)+O(operator)+D(destroyer)।
खुदा=और चूंकि ये तत्व’ खुद ‘ ही बने हैं इन्हे किसी प्राणी ने बनाया नहीं है इसलिए ये ही ‘खुदा’ हैं।
‘भगवान=GOD=खुदा’ – मानव ही नहीं जीव -मात्र के कल्याण के तत्व हैं न कि किसी जाति या वर्ग-विशेष के।
पोंगा-पंथी,ढ़ोंगी और संकीड़तावादी तत्व (विज्ञान और प्रगतिशीलता के नाम पर) ‘धर्म’ और ‘भगवान’ की आलोचना करके तथा पुरोहितवादी ‘धर्म’ और ‘भगवान’ की गलत व्याख्या करके मानव द्वारा मानव के शोषण को मजबूत कर रहे हैं। ऐसे तथा-कथित प्रगतिशीलों का मखौल सुधीश पचौरी जी ने ‘हिंदुस्तान,लखनऊ,के 20 नवंबर 2011 के इस लेख मे उड़ाया है जिसका स्कैन आप नीचे देख रहे हैं।:
%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8.jpg
‘ज्योतिष’=वह विज्ञान जो मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध ‘ बनाने मे सहायक है। अखिल ब्रह्मांड मे असंख्य तारे,ग्रह और नक्षत्र हैं जिनसे निकलने वाला प्रकाश समस्त जीवधारियों तथा वनस्पतियों सभी को प्रभावित करता है। मानव जीवन पर इस प्रभाव का अध्यन करके लाभकारी स्थिति बताना ‘ज्योतिषी’ का कर्तव्य होता है और जो इस से हट कर गलत कार्य करता है वह ज्योतिषी नहीं है केवल उसी की आलोचना और विरोध होना चाहिए। परंतु प्रगतिशीलता के नाम पर ढ़ोंगी व्यक्ति का विरोध न करके ज्योतिष का विरोध करने का मतलब है ‘मानव’ को प्रकृति सुलभ ज्ञान से वंचित करना और यह भी उतना ही गलत और बुरा है जितना ज्योतिष के नाम पर ठगना।
‘साम्यवाद’=समष्टिवाद है जिसमे व्यक्ति विशेष का नहीं समाज का सामूहिक कल्याण सोचा और किया जाता है। अतः साम्यवाद ही परम मानव-धर्म है। साम्यवाद के तत्व वेदों मे मौजूद हैं। ऋग्वेद के अंतिम सूक्त मे मंत्रों द्वारा दिशा-निर्देश दिये गए हैं।
‘सं ……. वसून्या भर’ अर्थात-
हे प्रभों तुम शक्तिशाली हो बनाते सृष्टि को ।
वेद सब गाते तुम्हें हैं कीजिये धन वृष्टि को। ।
‘संगच्छ्ध्व्म ……. उपासते’ अर्थात-
प्रेम से मिल कर चलें बोलें सभी ज्ञानी बने।
पूर्वजो की भांति हम कर्तव्य के मानी बने। ।
‘समानी मंत्र : ……. हविषा जुहोमि’ अर्थात-

हो विचार समान सबके चित्त मन सब एक हो।
ज्ञान पाते हैं बराबर भोग्य पा सब नेक हों। ।
‘समानी व आकूति: ….. सुसहासति’
हो सभी के दिल तथा संकल्प अविरोधी सदा।
मन भरे हो प्रेम से जिससे बढ़े सुख संपदा। ।
कोई भी प्रगतिशीलता के नाम पर यदि उपरोक्त मानव-कल्याण के संदेशों की उपेक्षा करता है और उससे दूर रहने की बात करता है तो स्पष्ट है कि वह समष्टिवादी-साम्यवादी नहीं है। ‘साम्यवाद’ मूलतः भारतीय अवधारणा है जिसका उल्लेख सम्पूर्ण वेदिक साहित्य मे है। जर्मनी के मैक्स मूलर साहब भारत आए 30 वर्ष यहाँ रह कर संस्कृत का अध्यन करके ‘मूल पांडुलिपियाँ’ लेकर जर्मनी रवाना हो गए और वहाँ जाकर उनका जर्मनी भाषा मे अनुवाद प्रकाशित करवाया। ‘परमाणु विज्ञान’ पर जर्मनी मे ही खोज हुई थी और द्वितीय महायुद्ध मे जर्मनी की पराजय पर उसके वैज्ञानिकों को रूस एवं अमेरिका अपने-अपने देश ले गए थे जिनहोने उन देशों को ‘परमाणु बम’ उपलब्ध करवाए थे -यह अभी कुछ वर्ष ही पुरानी बात है।
इसी प्रकार मानव कल्याण के तत्वों को सहेज कर ‘मानव-विज्ञानी’ महर्षि कार्ल मार्क्स ने ‘दास कैपिटल’ ‘एवं ‘कम्यूनिस्ट मेनीफेस्टो’ नामक ग्रंथ दिये। उस समय जर्मनी और इंग्लैंड के समाज मे जैसा धर्म प्रचलित था उसका तीव्र विरोध महर्षि मार्क्स ने किया है जो बिलकुल वाजिब है । वस्तुतः वह धर्म था ही नहीं वह तो पुरोहितवाद था किन्तु लोग उसे धर्म कहते थे इसलिए मार्क्स ने भी उसे धर्म कह दिया। इसका यह मतलब नहीं है कि मार्क्स ने मानव-कल्याण हेतु प्रपादित ‘धर्म’ का विरोध किया है। दुर्भाग्य से अहंकार ग्रस्त नेता लोग मार्क्स के मर्म को न समझ कर शब्दजाल मे उलझाना चाहते और मनुष्य कल्याण की धर्म की भावना का सतत विरोध करके अंततः शोषकों का ही हितसाधन करते हैं। यह तो शोषकों की ही चाल है कि उन्होने ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा हेतु RSS को धर्म का अलमबरदार बना कर खड़ा कर दिया जो ‘धर्म’ पर ही प्रहार करके ‘ढोंग व पाखंड’ को धर्म के नाम पर परोसता है। प्रगतिशील तथा साम्यवादी चिंतकों का यह नैतिक दायित्व है कि वे ‘धर्म’ की वास्तविक अवधारणा से जनता को अवगत कराकर उन्हें शोषण और उत्पीड़न से बचाएं। किन्तु विज्ञान और प्रगतिशीलता का नाम लेकर वे धर्म का ही विरोध करते हैं और इस प्रकार पुरोहितवाद को संरक्षण प्रदान कर देते हैं।
चूंकि मै सत्य को समझाने का प्रयास करता हूँ इसलिए कुछ बड़े विद्वान अपने अहम के कारण उसका विरोध करते हैं और प्रकारांतर से ‘साम्यवाद’ विरोधियों का ही पृष्ठ-पोषण करते हैं। पश्चिम बंगाल के ऐसे ही नेताओं के कारण 34 वर्ष का बामपंथी शासन समाप्त हो गया क्योंकि उन्होने ‘पश्चिम बंगाल के बंधुओं से एक बेपर की उड़ान’ की ओर ध्यान ही नहीं दिया। सी पी एम के लोग अपने व्यक्तिगत मामलों का ज्योतिषीय समाधान मुझ से करवाते हैं और अपने बड़े नेताओं को उकसा कर ‘ज्योतिष’ एवं ‘धर्म’ पर कटाक्ष भी करवाते हैं यह दोहरी नीति ‘जनहित’ की विरोधी है और साम्यवाद की अवधारणा से जनता को दूर करने वाली है।

क्रांति स्वर कामरेड जितेंद्र रघुवंशी क ी नज़र में कार्ल मार्क्स

memory.JPG

jr1.jpeg
JR011.jpg

उपरोक्त में एक तो कामरेड जितेंद्र रघुवंशी जी लिखित उनका लेख है जिससे उनके क्रांतिकारी विचारों का परिचय होता है दूसरा ‘ताज महोत्सव’ के परिप्रेक्ष्य में व्यक्त उनके नाट्य- कला के प्रति वेदनात्मक अभिव्यक्ति।
भाकपा,आगरा की कार्यकारिणी में मुझे जितेंद्र जी के साथ कार्य करने का अवसर मिला है IPTA के उनके कार्यक्रमों को देखने भी अधिकांशतः जाते ही थे। उनके साथ व्यक्तिगत रूप से भी विचारों का आदान-प्रदान होता रहता था।
1%E0%A4%9C-.jpg

j-2.jpg
आगरा से मेरे लखनऊ आने के बाद भी वास्तविकता जानने हेतु मुझ पर ही उन्होने भरोसा किया जबकि बड़े-बड़े दिग्गजों से उनके यहाँ पर संपर्क पहले से ही मौजूद थे। पी एच डी होल्डर एक ब्राह्मण कामरेड ने 60-70 sms भेज कर राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान साहब के बारे में अनर्गल-भ्रामक अफवाह उड़ा दी थी जो कि उनके आश्रयदाता वरिष्ठ ब्राह्मण कामरेड द्वारा एक इंगलिश मेगज़ीन में छ्पवाई गई थी :

  • January 11, 2014
  • Jitendra Raghuvanshi
    1/11, 10:53pm
    Jitendra Raghuvanshi

    Anjan ji kee kya nayee khabar hai?

  • January 12, 2014
  • Vijai RajBali Mathur
    1/12, 3:41pm
    Vijai RajBali Mathur

    भाई साहब, लाल सलाम , मैं आपके प्रश्न का आशय समझ नहीं पाया था इसलिए आपके मोबाईल व घर पर फोन किया था। आप शायद कार्यक्रम में होंगे। 10-12-2014 का उनका यह बयान जो उन्होने खुद शेयर किया है आपको संलग्न कर रहा हूँ। वैसे आपको कोई नई बात ज्ञात हो तो सूचित करने का कष्ट करें।

    %E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8photo.php.jpg

उनका फेसबुक पर लिखा यह संदेश ही उनका अंतिम संदेश बन गया है। उनकी बातों व यादों को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। :
(विजय राजबली माथुर )
*****
jr.JPG
AMAR%2BUJALA%2B08%2BMARCH%2B2015.jpgDJ%2BAGRA%2B08032015.JPG
hiNDUSTAN.jpg
jc.JPG
bechu.JPG
यही लेख ‘साम्यवाद (COMMUNIST)’ ब्लाग पर भी उपलब्ध है :
http://communistvijai.blogspot.in/2015/03/blog-post_19.html

क्रांति स्वर ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ म ूवमेंट भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए खड़ा हुआ

प्रस्तुत लेख आ आ पा और कांग्रेस में मिलीभगत को इंगित करता है। 2011 से ही अपने ब्लाग http://krantiswar.blogspot.in/ के माध्यम से स्पष्ट करता रहा हूँ कि हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव के कारपोरेट भ्रष्टाचार संरक्षण आंदोलन को कांग्रेस के मनमोहन सिंह गुट/RSS का समान समर्थन रहा है। जब मनमोहन जी को तीसरी बार पी एम बनाने का आश्वासन नहीं मिला तो मोदी को पी एम बनवा दिया गया है और मोदी के विकल्प के रूप में केजरीवाल को तैयार किया जा रहा है। RSS के कांग्रेस मुक्त भारत की परिकल्पना को अमेरिका प्रवास के दौरान जस्टिस काटजू साहब बखूबी संवार रहे हैं महात्मा गांधी,नेताजी सुभाष और जिन्नाह साहब के विरुद्ध विष-वमन करके। मनमोहन जी के विकल्प के रूप में मोदी व मोदी के विकल्प के रूप में केजरीवाल की ताजपोशी की रूप रेखा व्हाईट हाउस में बराक ओबामा के निर्देश पर तैयार की गई थी और निर्वाचन प्राणाली की खामियों तथा ई वी एम के करिश्मे के जरिये उस पर जनता की मोहर लगवा ली गई है। परंतु साम्यवादियों/वामपंथियों का केजरीवाल की परिक्रमा करना आत्मघाती तो है ही बल्कि देश के लिए भी अहितकर है। —विजय राजबली माथुर