19 अप्रैल 2012 को ‘रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना‘ मेरा लेख प्रकाशित हुआ और राष्ट्रपति महोदया ने 26 अप्रैल 2012 को ‘रेखा जी’ को राज्यसभा के लिए मनोनीत कर दिया तो अगले ही दिन 27 अप्रैल 2012 को ‘साम्यवाद के पोंगा पंडित’ इन महोदय ने मुझ से संपर्क किया क्योंकि तब उनकी मान्यता यह थी –
क्रांति स्वर…..: बामपंथी कैसे सांप्रदायिकता का संहार करेंगे? —
September 19, 2011
Arun Prakash Mishra
- dekh liyaa … bahut behtar
- April 27
Arun Prakash Mishra- Vijai ji, how much you charge?
Arun
- Vijai ji, how much you charge?
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April 27
Vijai RajBali Mathur- कामरेड आप क्यों चार्ज की चिंता करते हैं?अपना या परिवार के किसी भी सदस्य का आप निसंकोच पूछ सकते हैं। कई ब्लागर्स को जिनमे दो इस समय केनाडा मे हैं मैंने बिना किसी चार्ज के बताया है और उन्होने उसका लाभ भी उठाया है। वे अपनी विचार धारा के भी नहीं हैं। आप अपने हैं किसी प्रकार की चिंता किए बगैर संबन्धित व्यक्ति का जन्म समय,तारीख,स्थान और संभव हो तो दिन भी भेज देंगे मै विवरण तैयार कर दूँगा। विशेष प्रश्न हो तो उसका भी उल्लेख कर दें।
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April 27
Arun Prakash Mishra- 14:45
3-Nov-1955
kanpur
videsh ki kyaa sthiti ban rahee hai?
- 14:45
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April 27
Vijai RajBali Mathur- कल दिन मे आपको विवरण गणना करके भेज दूँगा।
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April 28
Arun Prakash Mishra- dhanyavad aur aabhaar.
- April 28
Vijai RajBali Mathur- मिश्रा जी आपका विश्लेषण बना कर ई-मेल मे सेव कर लिया है। कृपया अपना ई-मेल एड्रेस दें जिससे आपको भेज सकें क्योंकि मेसेज मे न आ सकेगा।
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April 28
Arun Prakash Mishra- drapm@ymail.com
03-11-1955, 14-45 pm,कानपुर पर आधारित विश्लेषण
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Apr 28
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लेकिन अफसोस यह कि यह व्यक्ति महान नहीं हैं। पत्रकार ‘यशवन्त सिंह’ के जेल जाने पर मदन तिवारी जी,अमलेंदू उपाध्याय जी एवं दयानन्द पांडे जी के लेखों को मैंने भी शेयर किया और पत्रकार की रिहाई की मांग का समर्थन किया। तभी से यह भड़क गए और इनहोने यशवन्त सिंह की गिरफ्तारी को जायज ठहराया क्योंकि इनके खुद के संबंध विनोद कापड़ी से रहे हों प्रतीत होते हैं। ‘लाल झण्डा यूनिटी सेंटर’-फेसबुक के ग्रुप मे मैं और यह साहब दोनों ही एडमिन थे। मैंने तो इनकी असभ्य एवं अश्लील भाषा प्रयोग (वह भी तब जब यह मुझसे निशुल्क सेवाएँ प्राप्त कर चुके थे)के बावजूद ‘लोकतान्त्रिक स्वतन्त्रता’ के भाव के कारण इनको नहीं निकाला किन्तु इनहोने मुझे उस ग्रुप से ब्लाक कर दिया । मुझे न तो ग्रुप से हटने पर कोई हानि है और न ही यदि यह मुझे भाकपा से भी निकलवा देंगे (जैसा कि उपरोक्त टिप्पणी से स्पष्ट होता है)तो कोई हानि होगी।वैसे भाकपा के तीन वरिष्ठ नेताओं ने मुझसे कुंडलियाँ बनवाई हैं। लखनऊ के ज़िला सचिव जो मुस्लिम संप्रदाय से हैं श्री कृष्ण को ‘साम्यवाद का प्रयोग्कर्ता’ बताने मे नहीं झिजकते हैं। प्रदेश सचिव जो ब्राह्मण जाति मे जन्मे हैं ‘शिव की जटाओं से गंगा निकालने’ की बात कहने मे नहीं शर्माते। राष्ट्रीय एक सचिव ने 02 फरवरी 2011 की जनसभा मे खुले आम राम चरित मानस से उद्धरण दिये थे। अगर साम्यवाद को जन-प्रिय बनाना है तो जनता को समझाना ही होगा। ‘स्टालिन’ तक को कम्युनिस्ट न मानने वाले पोंगा साम्यवादी पंडित ए पी मिश्रा जी कुछ ज़्यादा ही प्रकांड विद्वान हैं वह और तरक्की करें,हमारी शुभकामनायें हैं।
प्रेस और जनता के बीच भाकपा द्वारा जो नया मसौदा जारी किया गया है उसके अनुसार पार्टी भारत के विद्वानों के उद्धरण लेकर जनता के बीच जाना चाह रही है। मेरे प्रयास पहले से ही अपने ब्लाग के माध्यम से इस दिशा मे चल रहे थे और चलते रहेंगे। लेकिन ए पी मिश्रा जैसे ‘साम्यवादी पोंगा पंडितों’ के रहते भारत मे साम्यवाद का प्रचार व प्रसार असंभव है क्योंकि ये लोग प्रचलित व्यवस्था मे अपना हित निहित होने के कारण उसका पोषण और पुष्टि करते रहते हैं। यदि ‘मनसा-वाचा-कर्मणा’ यह साम्यवाद के पोषक होते तो यूनिटी सेंटर को ‘ए पी डिक्टेटरशिप सेंटर’मे न तब्दील करते और वस्तुस्थिति को समझते। यह शख्स इतने गरूर मे भरा हुआ है कि देखिये इंनका प्रवचन-
चूंकि इन महाशय ने अपनी थीसिस मे स्टालिन को गलत साबित किया है इसलिए सारी दुनिया को मान लेना चाहिए कि स्टालिन कम्युनिस्ट नहीं था यह है इनकी अवधारणा। जो यह कहें उसे पूरी दुनिया माने और यह खुद किसी की बात भी नहीं सुन सकते।साम्राज्यवादियो के हित मे इस व्यक्ति ने स्टालिन की आलोचना की तो उस पर डाकटरेट मिलना ही था। यदि ऐसे लोगों के हाथ मे साम्यवाद को लागू करने का प्रोग्राम दे दिया जाये तो यह सब कुछ गुड-गोबर कर डालेंगे जिससे सारी योजना ही ध्वस्त हो जाये। इंनका उद्देश्य तो यथा-स्थिति बनाए रख कर अपने जन्म-जाति बंधुओं के व्यापार (ढोंग-पाखंड-आडंबर)को बल प्रदान करना है। इनकी कुंडली का विश्लेषण जो इनको भेजा था उसकी कापी ऊपर प्रस्तुत कर दी है। किन्तु जो बातें उस विश्लेषण मे देना उचित नहीं समझा था उनको भी अब उजागर करना आवश्यक है।
हालांकि किसी की जन्म पत्री का विश्लेषण गोपनीय रखा जाता है और किसी दूसरे को नहीं बताया जाता है परंतु इस अहंकारी और उच्छ्श्रंखल व्यक्ति का विश्लेषण असाधारन और विशेष परिस्थितियों मे सखेद सार्वजनिक करना पड़ रहा है। क्योंकि जैसा कि इनकी उपरोक्त टिप्पणियों से स्पष्ट है कि यह अपनी फेसबुक वाल तथा लाल झण्डा यूनिटी सेंटर ग्रुप मे मेरे प्रति कुत्सित टिप्पणियाँ सार्वजनिक रूप से करते आ रहे हैं। अतः इंनका चरित्र उजागर करना लाजिमी हो गया था।
पूना मे प्रवास कर रही एक ब्लागर महोदया ने भी ‘रेखा’ वाले मेरे आलेख की खिल्ली उड़ाई थी जबकि वह अपने बच्चों की चार कुंडलियाँ मुझसे बनवा चुकी थीं। परंतु चेतावनी के बाद फिर उनकी गतिविधियां फिलहाल रुक गई जबकि विदेश मे प्रवास कर रहे पंडित ए पी मिश्रा जी बार-बार ,लगातार फेसबुक और इसके ग्रुप मे मेरे विरुद्ध अनावश्यक विष-वमन करते जा रहे हैं। ‘जनहित’ मे दी गई स्तुतियों को इस शख्स ने ‘चाशनी की जलेबी’ और मेरे वाचन को ‘भारी आवाज़’ बताया है। ‘स्तुतियाँ’ मैंने नहीं रची हैं वे विद्वानों की खोज हैं। मुझे सिर्फ लोगों के भले का संदेश देना था अपनी आवाज़ को लोकप्रिय बनाना उद्देश्य न था जो पहले गायन सीख कर आता। ‘मोटे फ्रेम का चश्मा’ अपनी हैसियत या पसंद के अनुसार लगाता हूँ। कोई दूसरा कौन होता है हिदायत देने वाला फिर उम्र मे पौने चार वर्ष छोटे एहसान फरामोश ए पी मिश्रा जी की बातों पर तवज्जो क्यों दी जाये?
यह महाशय अपने कुटुम्ब के साथ द्वेष रखते होंगे। यह ज़रूरत से ज़्यादा कपटी एवं स्वार्थी होंगे। जलाघात एवं वृक्षाघात का इनको सामना करना पड़ सकता है। पुत्रों की ओर से भी इनको दुख मिल सकता है। इनके व्यवहार से इनकी पत्नी का स्वास्थ्य कमजोर रहता होगा और उनको उदर संबंधी रोगों-लीवर /किडनी का भी सामना करना पड़ सकता है। चूंकि इनहोने सार्वजनिक ग्रुप मे मेरे ज्योतिषीय ज्ञान की खिल्ली उड़ाई है अतः इन्हें मेरे द्वारा बताए गए उपायों एवं मंत्रों का सहारा नहीं लेना चाहिए क्योंकि मखौल उड़ाते हुये मंत्रों का प्रयोग उल्टा भी पड़ सकता है। नैतिकता का भी यही तक़ाज़ा है कि जिस बात की खिलाफत करते हैं उससे लाभ न उठाएँ।
परंतु अहम सवाल तो यह है कि ‘साम्यवादी सोच’ के लोग इनको साथ लेकर किसका भला कर सकेंगे ?जनता का तो नहीं ही। जब तक ऐसे लोग साम्यवादी विचार धारा मे रहेंगे तब तक भारत मे ‘साम्यवाद’ की कल्पना दिवा-स्वप्न ही है।