संविधान और संसद को चुनौती-अधिनायकवाद की आहट

ढाई हजार वर्ष पूर्व ‘अर्थशास्त्र’ मे कौटिल्य-चाणक्य ने कहा था-” जिस तरह जीभ पर रखे शहद या जहर को चखे बिना रह सकना असंभव है,उसी तरह सरकारी कर्मचारी भी राजा के राजस्व का कम से कम एक अंश न खाएं ,ऐसा होना भी असंभव है। जैसे यह जानना संभव नहीं है कि जल मे तैरती मछली कब पानी पीती है,वैसे ही यह पता करना भी मुमकिन नहीं है कि सरकारी कार्य मे लगे कर्मचारी कब और कितना धन चुराते हैं। “


मुगलों ने यहाँ रिश्वत के दम पर सत्ता स्थापित की और अंग्रेजों ने भी। 1991 से उदार आर्थिक नीतियों के नाम पर जो व्यवस्था स्थापित हुई उसने भ्रष्टाचार को द्रुत गति से बढ़ा दिया है। कारपोरेट जगत ने इन नीतियों के आधार पर काफी लाभ उठाया है और फँसने पर राजनेताओं पर इल्जाम लगाया है। कुछ नेताओं को सजा मिली भी है और कुछ सजा पाने की कतार मे खड़े हैं। नंबर इन कारपोरेट घराने वालों का भी लग सकता है। उनके बड़े अधिकारी तो जेल मे पहुँच भी गए हैं। अपनी सुरक्षा हेतु इन कारपोरेट धुरंधरों ने N G O कर्ताओं को जिन्हें वे धन देकर ओबलाइज करते थे ,भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने का आग्रह किया। इन लोगों ने महाराष्ट्र के पूर्व फौजी जो अन्ना हज़ारे के नाम से वहाँ लोकप्रिय थे,अपना मोहरा बना कर आगे खड़ा कर दिया ताकि जनता को गुमराह किया जा सके।

(19/08/2011 “हिंदुस्तान-लखनऊ)

(25/08/20111,हिंदुस्तान-लखनऊ )

(25/08/2011,हिंदुस्तान लखनऊ)

(अमलेंदु उपाध्याय जी का आज का फेसबुक स्टेटस )

इसी बीच अमेरिका की ऋण-व्यवस्था चक्रव्यूह मे फंस गई कहीं भारत भी अपना दिया ऋण वापिस न मांगने लगे अतः यहाँ की अर्थव्यवस्था को दूरगामी चोट पहुंचाने हेतु एन जी ओज द्वारा नियंत्रित अन्ना आंदोलन कर्ताओं को वहाँ की ‘फोर्ड फाउंडेशन’,ओर फाउंडेशन आदि ने भी प्रचुर धन मुहैया करा दिया। जो भाजपा और शिव सेना आज अन्ना हज़ारे का समर्थन कर रहे हैं उन्हीं की सरकार ने महाराष्ट्र मे इन्हीं हज़ारे साहब को तीन माह की जेल कारवाई थी। यह हज़ारे साहब की बुद्धि का ही कमाल है कि आज उन्हीं भाजपा और शिव सेना के जाल मे फंस कर देश-हित को भुला बैठे हैं।

जहां इलेक्ट्रानिक मेडिया और अखबार कारपोरेट घरानों के इशारे पर अन्नावाद से पीड़ित हैं एक जागरूक और देशभक्त पत्रकार महेन्द्र श्रीवास्तव जी  अपने ब्लाग  मे लिखते हैं-(उनके ब्लॉग से लिया गया मैटर उनकी पोस्ट से लिंक किया गया है)

“आज 10 साल बाद एक बार फिर संसद पर हमला हो रहा है। आप भले कहें कि ये कोई आतंकी हमला नहीं है। लेकिन मित्रों मैं बताऊं ये उससे भी बड़ा और खतरनाक हमला है। इस हमले में किसी एक व्यक्ति या नेता की हत्या करना मकसद नहीं है। बल्कि इनका मकसद संसदीय परंपराओं और मान्यताओं की हत्या करना है। आज तमाम लोग भावनाओं में बहकर शायद उन पांच आतंकियों को ज्यादा खतरनाक कहें तो हथियार के साथ संसद भवन में घुसे थे, लेकिन मैं उनके मुकाबले सिविल सोसाइटी के पांच लोगों को उनसे ज्यादा खतरनाक मानता हूं। बस दुख तो ये है कि ये सीमापार से नहीं आए हैं, हमारे ही भाई है। लोकतांत्रिक व्यवस्था से भली भांति परिचित भी हैं, फिर भी देश के लोकतंत्र को कमजोर और खत्म करने …. “


अब तो और लोग भी साहस करके देश-हित की बात लिखने लगे हैं ,देखिये हिंदुस्तान,लखनऊ 25 अगस्त मे छ्पे ये आलेख –













आज गली-गली ,चौराहे-चौराहे लाउडस्पीकरों से अन्ना  भक्तों द्वारा बिजली की कटिया डाल कर जो शोर मचाया जाता है वह भ्रष्टाचार की श्रेणी मे क्यों नहीं है? N G O क्यों नहीं लोकपाल के आधीन होने चाहिए? क्योंकि इन  N G O को धन विदेशी फाउंडेशनों से मिलता है,कारपोरेट घरानों से मिलता है। उनके भ्रष्टाचार का पर्दाफाश इसलिए ही नहीं होना चाहिए। महेन्द्र श्रीवास्तव जी ने इन पाँच तथाकथित  सिविल सोसाइटी के लोगों को ज्यादा खतरनाक माना है क्योंकि वे जान-बूझ कर भारतीय संविधान और संसद की सार्वभौमिकता को चुनौती दे रहे हैं। इनके पीछे फासिस्ट आर एस एस का खुला हाथ है। 1992 मे इसी संगठन ने अपने सहयोगी संगठनों के साथ विदेशी फाउंडेशनों के धन-बल से संविधान निर्मात्री समिति के चेयरमेन डा  भीम राव अंबेडकर के परी निर्वाण दिवस 06 दिसंबर को अयोध्या का कोर्ट मे विवादित ढांचा गिरा दिया था मानो वे संविधान को गिराने पूर्वाभ्यास कर रहे थे। आज संवैधानिक नियमों को परे रख कर संसद को बंधुआ बना कर अपना कारपोरेट घरानों के बचाव वाला लोकपाल बिल पास कराना चाहते हैं। 


15 अगस्त -स्वाधीनता दिवस की रात्रि 08-09 ब्लैक आउट करने का आह्वान किया गया,रात के समय राष्ट्र ध्वज फहराया गया,

(19/08/2011,हिंदुस्तान लखनऊ )



राष्ट्र ध्वज लेकर अन्ना-भक्तों  जुलूस निकाल रहे हैं और प्रदर्शन हो रहे हैं जो कि सरासर राष्ट्रीय ध्वज का लगातार अपमान किया जा रहा है क्योंकि, 15 अगस्त,26 जनवरी,02 अक्तूबर को छोड़ कर राष्ट्रीय ध्वज सरकारी भवनों को छोड़ कर अन्यत्र प्रयोग नहीं किया जा सकता है। मैंने अपने ‘कलम और कुदाल’ पर राष्ट्रद्रोह के आरोप मे अन्ना की गिरफ्तारी की मांग की थी। यदि तभी कारवाई हुयी होती तो आज अन्ना आंदोलन का उग्र-राष्ट्र -विरोधी रूप सामने नहीं आ पाता। 


तमाम भ्रष्ट सरकारी अधिकारी और कर्मचारी आज अन्ना -आंदोलन मे शामिल होकर उसके उद्देश्य को स्पष्ट कर रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी जब अपने वरिष्ठ होने पर इतिहास का मूल्यांकन करेगी तब उसे पछतावा ही होगा। यह युवा शक्ति का भ्रष्ट तंत्र द्वारा गलत शोषण है। सरकार का विरोध करने की खातिर अपने देश ,अपने संविधान,अपने राष्ट्र-ध्वज और अपनी संसद को इस प्रकार कमजोर करने का कोई भी प्रयास ‘राष्ट्रद्रोह’ ही है। 


आर एस एस जो लगातार अपनी अर्ध-सैनिक तानाशाही स्थापित करने के प्रयासों मे लगा रहता है इस राष्ट्र-द्रोही अन्ना आंदोलन को खूब हवा दे रहा है। गोलवालकर साहब का कहना था- यदि गांवो  के 3 प्रतिशत और शहर के 2  प्रतिशत लोग आर एस एस के समर्थक हो जाएँ तो उनकी तानाशाही स्थापित हो सकती है। सहारनपुर से प्रकाशित ‘नया जमाना’ के संस्थापक संपादक -कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ ने इस बाबत संघ के एक तगड़े नेता लिंम्ये  जी को आगाह किया था कि ऐसा होने पर दिल्ली की सड़कों पर कम्यूनिस्टों और संघियों के मध्य निर्णायक  रक्त-रंजित सत्ता – संघर्ष होगा। विदेशी शक्तियाँ और आर एस एस आदि संगठन मिल कर भी इतनी आसानी से केंद्र की सत्ता को अपनी कैद मे नहीं ले सकेंगे। 


बहरहाल आज का अन्ना आंदोलन और इसके संचालकों के हालात तो यही बता रहे हैं कि वे देश को अशांति की भट्टी मे झोंकने को तैयार बैठे हैं। आम जनता का ही यह दायित्व है कि वह इस कारपोरेट चाल को समझे एवं अपनी रोजी,रोटी,शोषण,उत्पीड़न की समस्याओं के निराकरण की मांग तीव्र करे न कि इस राष्ट्रद्रोही आंदोलन मे भाग लेकर पाप की भागीदार बने।