डा सुब्रह्मण्यम स्वामी चाहते क्या हैं?


(मूल रूप से यह लेख 1991 मे लिखा था जो प्रेस मे प्रकाशन योग्य  नहीं माना गया था ,मुझे लगता है परिस्थितियों मे कोई बदलाव नहीं हुआ है अतः इसे ब्लाग पर दे रहा हूँ)

डा सुब्रह्मण्यम स्वामी जनसंघ और संघ के एक समर्पित कर्मठ नेता रहे हैं। आपात काल मे भूमिगत रह कर इन्होने इंदिरा गांधी को नाकों चने चबवाये थे। गिरफ्तारी से बच कर अमेरिका चले गए बीच मे आकर राज्यसभा के अधिवेशन मे भाग लेकर इंदिरा गांधी को चौंका दिया फिर पंजाबी न जानते हुये भी सिख-वेश मे पुनः फरार हो गए। जनसंघ के जनता पार्टी मे विलय के पश्चात संघ ने प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई के पीछे डा सुब्रह्मण्यम स्वामी को ही लगाया था। अटल बिहारी बाजपेयी चौ.चरण सिंह के पीछे और नाना जी देशमुख जनता पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर के पीछे छाये रहे।

जनता पार्टी के तीसरे विभाजन के समय अटल जी भाजपा के अध्यक्ष बन कर चले गए। नाना जी देशमुख इंदिरा जी के साथ होकर सक्रिय राजनीति से पीछे हट गए और डा स्वामी जनता पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर के साथ चिपक गए और मोरारजी से भी संबन्ध बरकरार रखे रहे। मोरारजी के मन्त्र पर  चंद्रशेखर के विरुद्ध जनता पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लड़ा -हार गए और चंद्रशेखर पर तानाशाही व हेरा-फेरी का आरोप लगाने के कारण शेखर जी द्वारा जनता पार्टी से निष्कासित किए गए।

मोरारजी द्वारा सक्रिय राजनीति से निष्क्रिय होने पर संघ के आदेश पर जनता पार्टी मे चंद्रशेखर से माफी मांग कर पुनः शामिल हो गए और उन्हें अपना स्वामी बना लिया। जनता पार्टी के जनता दल मे विलय होने पर चंद्रशेखर और संघ के प्रथक-प्रथक आदेशों पर डा स्वामी ने इन्दु भाई पटेल की अध्यक्षता मे जनता पार्टी को जीवित रखा जिसे राजीव सरकार की कृपा से चुनाव आयोग ने जनता पार्टी (जे पी) के रूप मे पंजीकृत कर लिया।

1980 से ही संघ इंदिरा कांग्रेस समर्थक कारवाइयाँ कर रहा था। आपात काल मे’ देवरस-इंदिरा सम्झौता ‘ हो गया था और उसी का परिणाम पहले मोरारजी फिर वी पी सरकारों का पतन रहा। मधुकर दत्तात्रेय (उर्फ बाला साहब) देवरस चाहते हैं कि,संघ उनके जीवन काल मे सत्ता पर काबिज हो जाये। इसके लिए डा जयदत्त पन्त के मतानुसार उन्होने लक्ष्य रखा था कि,शहरों का 2 प्रतिशत और गावों का 3 प्रतिशत जनसमर्थन प्राप्त कर लिया जाये जो संभवतः रामजन्म भूमि आंदोलन बनाम आडवाणी कमल रथ यात्रा से पूरा हो गया लगता है।

जनता दल सरकार का विघटन कराने मे संघ ने दोतरफा कारवाई की। बाहरी हमले के रूप मे आडवाणी कमल रथ यात्रा सम्पन्न कराकर प्रत्यक्ष रूप से वी पी सरकार को गिरा दिया । दूसरे कदम के रूप मे डा स्वामी के माध्यम से जनता दल मे चंद्रशेखर समर्थक लाबी बनवाकर दल का विभाजन करा दिया और राजीव कांग्रेस की मदद से चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनवा दिया। संघ के निर्देश पर चंद्रशेखर सरकार मे डा स्वामी कानून और बानिज्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री बन कर संघ की सत्ता प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।

भाजपा सांसद जस्वन्त सिंह पूर्व मे ही बोफोर्स तोपों को सही ठहरा चुके हैं। अतः बोफोर्स कमीशन भी भाजपा बनाम संघ की निगाह मे जायज है और बानिज्य मंत्री के रूप मे डा स्वामी राजीव भैया को बोफोर्स कमीशन की दलाली के दलदल से उबारने का प्रयास करेंगे।

कानून मंत्री के रूप मे डा स्वामी ने सर्वप्रथम व्यवस्थापिका का अवमूल्यन करने हेतु लोकसभा अध्यक्ष श्री रबी रे को गिरफ्तार करने की धमकी  दी जिसमे पाँसा उलटते देख कर माफी मांग ली फिर हाईकोर्ट ,दिल्ली मे अपने सचिव से हलफनामा दाखिल कराकर लोकसभा अध्यक्ष के अधिकारों को दल -बदल कानून की आड़ मे चुनौती दी जहां फिर मुंह की खानी पड़ी।

बचकाना हरकतें नहीं

प्रेस मे डा स्वामी की कारवाईयों को बचकाना कह कर उपहास  उड़ाया जा रहा है उनकी गंभीरता पर विचार नहीं किया जा रहा। हारवर्ड विश्वविद्यालय,अमेरिका का यह विजिटिंग प्रोफेसर न केवल प्रकाण्ड विद्वान है वरन दिलेरी के साथ बातें कह कर अपने मंसूबों को कभी छिपाता नहीं है।

डा स्वामी को जब चीन सरकार ने आमंत्रित किया तो दिल्ली हवाई अड्डे पर आपने पत्रकारों से दो-टूक कहा था कि,”मै रूस विरोधी हूँ इसलिए चीन सरकार ने मुझे ही बुलाया”। आप इज़राईल के प्रबल समर्थक हैं जो कि,साम्राज्यवाद के सरगना अमेरिका का कठपुतली देश है। सांसद का .सुभाषिणी अली ने 11 जनवरी 1991  को चंद्रशेखर सरकार से मांग की है कि,अक्तूबर 1990 मे ‘इंडियन एक्स्प्रेस’मे छ्पे समाचारों मे डा स्वामी ने श्री लंका के विद्रोही ‘लिट्टे छापामारों’ और इज़राईली गुप्तचर संगठन ‘मोसाद’मे संपर्क कराने की जो स्वीकारोक्ति की है उसकी जांच की जाये। डा स्वामी जो करते रहे हैं या कर रहे हैं उसमे उन्हें का .सुभाषिणी अली की हिदायत की आवश्यकता नहीं है वह तो उनके संघ से प्राप्त आदेशों का पालन करना था न कि कम्यूनिस्टों की संतुष्टि करना।

अब क्या करेंगे?

डा सुब्रह्मण्यम स्वामी हर तरह की संदेहास्पद गतिविधियां जारी रख कर ‘लोकतान्त्रिक ढांचे की जड़ों को हिलाते रहेंगे’ और संघ सिद्धांतों की सिंचाई द्वारा उसे अधिनायकशाही  की ओर ले जाने का अनुपम प्रयास करेंगे।

07 नवंबर 1990 को वी पी सरकार के लोकसभा मे गिरते ही चंद्रशेखर ने तुरन्त आडवाणी को गले मिल कर बधाई दी थी और 10 नवंबर को खुद प्रधानमंत्री बन गए। चंद्रशेखर के प्रभाव से मुलायम सिंह यादव जो धर्म निरपेक्षता की लड़ाई के योद्धा बने हुये थे 06 दिसंबर 1990 को विश्व हिन्दू परिषद को सत्याग्रह केलिए बधाई और धन्यवाद देने लगे। राजीव गांधी को भी रिपोर्ट पेश करके मुलायम सिंह जी ने उत्तर-प्रदेश के वर्तमान दंगों से भाजपा,विहिप आदि को बरी कर दिया है।

आगरा मे बजरंग दल कार्यकर्ता से 15 लीटर पेट्रोल और 80 लीटर तेजाब बरामद होने ,संघ कार्यकर्ताओं के यहाँ बम फैक्टरी पकड़े जाने और पुनः शाहगंज पुलिस द्वारा भाजपा प्रतिनिधियों से आग्नेयास्त्र बरामद होनेपर भी सरकार दंगों के लिए भाजपा को उत्तरदाई नहीं ठहरा पा रही है। छावनी विधायक की पत्नी खुल्लम-खुल्ला बलिया का होने का दंभ भरते हुये कह रही हैं प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उनके हैं और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। चंद्रास्वामी भी विहिप की तर्ज पर ही मंदिर निर्माण की बात कह रहे हैं।

संघ की तानाशाही

डा सुब्रह्मण्यम स्वामी,चंद्रास्वामी और चंद्रशेखर जिस दिशा मे योजनाबद्ध ढंग से आगे बढ़ रहे हैं वह निकट भविष्य मे भारत मे संघ की तानाशाही स्थापित किए जाने का संकेत देते हैं। ‘संघ विरोधी शक्तियाँ’ अभी तक कागजी पुलाव ही पका रही हैं। शायद तानाशाही आने के बाद उनमे चेतना जाग्रत हो तब तक तो डा स्वामी अपना गुल खिलाते ही रहेंगे।

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यह लेख 1991 की परिस्थितियों मे लिखा गया था जिसे भयभीत प्रेस ने अपने समाचार पत्रों मे स्थान नहीं दिया था आज ब्लाग के माध्यम से इसे सार्वजनिक करने का उद्देश्य यह आगाह करना है कि ‘संघ’ अपनी योजना के अनुसार आज केवल एक दल भाजपा पर निर्भर नहीं है 31 वर्षों(पहली बार संघ समर्थन से इंदिरा जी की सरकार 1980 मे  बनने से)  मे उसने कांग्रेस मे भी अपनी लाबी सुदृढ़ कर ली है और दूसरे दलों मे भी । अभी -अभी अन्ना के माध्यम से एक रिहर्सल भी संसदीय लोकतन्त्र की चूलें हिलाने का सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया है।(हिंदुस्तान,लखनऊ ,25 सितंबर 2011 के पृष्ठ 13 पर प्रकाशित समाचार मे विशेज्ञ विद्व जनों द्वारा अन्ना के जन लोकपाल बिल को संविधान विरोधी बताया है। )   जिन्होने अन्ना के  राष्ट्रद्रोही आंदोलन की पोल खोली उन्हें गालियां दी गई  ब्लाग्स मे भी फेस बुक पर भी और विभिन्न मंचों से भी और जो उसके साथ रहे उन्हें सराहा गया है। यह स्थिति  देश की आजादी और इसके लोकतन्त्र के लिए खतरे की घंटी है। समस्त  भारत वासियों का कर्तव्य है कि विदेशी साजिश को समय रहते समझ कर परास्त करें अन्यथा अतीत की भांति उन्हें एक बार फिर रंजो-गम के साथ गाना पड़ेगा-‘मरसिया है  एक का,नौहा  है सारी कौम का ‘।

Hindustan-Lucknow-25/09/2011

5 comments on “डा सुब्रह्मण्यम स्वामी चाहते क्या हैं?

  1. गहन विश्लेषण…

  2. वो चाहते क्या हैं, वह उन्हें भी पता नहीं होगा।

  3. KANTI PRASAD says:

    डा सुब्रह्मण्यम स्वामी और जनसंघ के वास्तविक चरित्त की सटीक जानकरी

  4. Pallavi says:

    सच्ची वह चाहते क्या हैं शायद उन्हें खुद भी नहीं पता…समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। आपको और आपके सम्पूर्ण परिवार को हम सब कि और से नवरात्र कि हार्दिक शुभकामनायें….http://mhare-anubhav.blogspot.com/

  5. Vijai Mathur says:

    sanjog walter ने आपको एक ब्लॉग का लिंक भेजा है: नमस्कार माथुर साहब,एक एक बात में दम है एक एक दाना है सच्चाई का पर सच किसे हज़म होता पता है l पता नहीं यह "स्वामी" कब तक और क्या गुल खिलाएंगे —

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